खीर की दावत
मेरे घर में थी इक बिल्ली,
हम कहते थे उसको "लाली"
दूध दही की बड़ी चटोरी,
चट कर जाती भरी कटोरी
माँ ने इक दिन खीर पकाई,
लाली जी को खुशबू आई
दबे पाँव से वह घुस आई,
लेकर मज़े खीर सब खाई
खाकर खीर चली जब वह घर,
पड़ी नज़र माँ की तब उस पर
माँ ने देखा जब गुर्राकर,
काँप गई तब लाली डरकर
'म्याऊ - म्याऊ ' करके बोली
मै तो हूँ माँ बिलकुल भोली
"मै आउ " कहकर पूछा था
नहीं आपने तक रोका था
म्याऊ का मतलब तुम समझो
चलो माफ़ भी अब तो कर दो
म्याऊ म्याऊ दोहराऊंगी
सदा पूछकर ही आऊँगी
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